कुछ दशकों से पर्यावरण में आए बदलाव और प्रदूषण के कारण ना केवल हमारा ऊपरी स्वास्थ्य बल्कि डीएनए तक प्रभावित हो रहा है. सांस के प्रदूषण हमारे खून में समा गया है, यही कारण है कि दुनियाभर में 10 फीसद बच्चे प्री-मैच्योर डिलीवरी से पैदा हो रहे हैं. लेकिन भारत की बात करें तो हालात और भी गंभीर हैं. भारत में पैदा होने वाले बच्चों में से 15 फीसद बच्चे प्री-मैच्योर डिलीवरी से पैदा हो जाते हैं. यह खुलासा जर्मनी की द पीफ्रोहेम आर्गेनाइजेशन के शोध में हुआ है. वैज्ञानिकों का कहना है कि भ्रूण में बदलाव आ रहा है और उसी के कारण मेंटल डिस्टऑर्डर, दुबले-पतले, दिव्यांग या आंखों की समस्याओं के साथ बच्चे पैदा हो रहे हैं. यदि हम चाहते हैं कि आने वाली पीढी सेहतमंद पैदा हो तो अपने साथ साथ पर्यावरण को सेहतमंद बनाना होगा. वहीं दूसरी ओर पोष्टिक आहार, जनसंख्या वृद्धि, खेतों में कैमिकल, कुपोषणता, महिलाओं में तनाव, तापमान, रेडियोएक्टिवत, प्राकृतिक आपदा के साथ-साथ माइग्रेशन यानी एक जगह से दूसरी जगह जाने से भी महिलाओं के स्वास्थ्य पर असर हो रहा है. नतीजतन जन्म लेने वाले शिशु के स्वास्थ्य पर असर दिखना शुरू हो गया है. यदि आप भी इस समस्या का सामना कर रहे हैं तो अपने विचार हमारे साथ साझा करें.