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कड़ी संख्या-18;अपनी जमीन, अपनी आवाज - सुरक्षित भूमि अधिकार: महिला सशक्तिकरण और खाद्य सुरक्षा की कुंजी
बिहार के नवादा जिले के एक गांव में रहने वाली फगुनिया या फिर उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के किसी गांव में रहने वाली रूपवती के बारे में अंदाजा लगाइये, जिसके पास खुद के बारे में कोई निर्णय लेने की खास वज़ह नहीं देखती हैं। घर से बाहर से आने-जाने, काम काज, संपत्ति निर्माण करने या फिर राजनीतिक फैसले जैसे कि वोट डालने जैसे छोटे बड़े निर्णय भी वह अक्सर पति या पिता से पूछकर लेती हो? फगुनिया और रूपवती के लिए जरूरी क्या है? क्या कोई समाज महज दो-ढाई महिलाओं के उदाहरण देकर उनको कब तक बहलाता रहेगा? क्या यही दो-ढ़ाई महिलाएं फगुनिया और रूपवती जैसी दूसरी करोड़ों महिलाओं के बारे में भी कुछ सोचती हैं? जवाब इनके गुण और दोष के आधार पर तय किये जाते हैं।दोस्तों इस मसले पर आफ क्या सोचते हैं अपनी राय रिकॉर्ड करें .
भूमि सुधार कानूनों में संशोधन करके महिलाओं के भूमि अधिकार को सुनिश्चित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, कानूनों में यह प्रावधान किया जा सकता है कि महिलाओं को पैतृक संपत्ति में समान अधिकार होगा और विवाह के बाद भूमि का अधिकार हस्तांतरित नहीं होगा। सभी जमीनों का दस्तावेजीकरण किया जाना चाहिए ताकि महिलाएं अपने भूमि अधिकारों का दावा कर सकें। तब तक दोस्तों आप हमें बताइए कि *----- आपके हिसाब से महिलाओं को भूमि का अधिकार देकर घर परिवार और समाज में किस तरह के बदलाव लाए जा सकते हैं? *----- साथ ही आप इस मुद्दे पर क्या सोचते है ? और आप किस तरह अपने परिवार में इसे लागू करने के बारे में सोच रहे है ?
बिहार राज्य के नालंदा ज़िला के नूरसराय प्रखंड से शम्भू प्रसाद ,मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि प्रत्येक पंचायत प्रखंड में जमीन का सर्वे किया जा रहा था ,उसका लोग विरोध कर रहे थे।क्योंकि कानूनी हक़ जो महिलाओं को दिया गया था ,उसको धरातल पर नहीं उतारा गया था। किसी पिता ने ,किसी भाई ने अपनी बेटी व बहन को जमीन में हिस्सा नहीं दिया। बकास भूमि में पहले से लोगों ने कागज़ात नहीं बनवाया लेकिन जमीन मालिक पहले से मालगुज़ारी दे रहे है। इस अनुसार मालिकाना हक़ जमीन मालिक का होना चाहिए। पर अधिकारियों द्वारा इसमें बंदरबांट किया गया। यह शुरू से वंशावली और जमीन मामला में होता आ रहा है
कुछ महीने पहले की बात है, सरकार ने महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए कानून बनाया है, जिससे उन्हें राजनीति और नौकरियों में आरक्षण मिलेगा, सवाल उठता है कि क्या कानून बना देने भर से महिलाओं को उनका हक अधिकार, बेहतर स्वास्थय, शिक्षा सेवाएं मिलने लगेंगी क्या? *----- शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आर्थिक अवसरों तक महिलाओं की पहुंच में सुधार के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं *----- महिलाओं को जागरूक नागरिक बनाने में शिक्षा की क्या भूमिका है? *----- महिलाओं को कानूनी साक्षरता और उनके अधिकारों के बारे में जागरूक कैसे किया जा सकता है"
बिहार राज्य के जिला नालंदा के नगरनौसा प्रखंड से सोभा देवी की बातचीत मोबाइल वाणी के माध्यम से मोहित कुमार से हुई। मोहित कुमार यह बताना चाहते है कि महिला को जमीन पर अधिकार देना चाहिए। वह सरकार के खेती - बाड़ी लाभ से वंचित रह जाती है। महिला को ससुराल में सम्मान नहीं मिलता है। उनको कहा जाता है कि तुम मायके से क्या के लेकर आयी हो। महिला को जमीन पर हक़ मिलना चाहिए।
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वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 2021 की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में आर्थिक समानता में महिलाओं की संख्या 58 फीसदी है। लेकिन पुरुषों के बराबर आने में उन्हें अभी सदियां लग जाएंगी। 156 देशों में हुए इस अध्ययन में महिला आर्थिक असमानता में भारत का स्थान 151 है। यानी महिलाओं को आर्थिक आजादी और अचल संपत्ति का हक देने के मामले में एक तरह से हम दुनिया में सबसे नीचे आते हैं। दोस्तों आप हमें बताइए कि *----- पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के जीवन का बड़ा समय इन अधिकारों को हासिल करने में जाता है, अगर यह उन्हें सहजता से मिल जाए तो उनका जीवन किस तरह आसान हो सकता है? *----- महिलाओं के लिए भूमि अधिकारों तक पहुंच में सुधार के लिए कौन- कौन से संसाधन और सहायता की आवश्यकता हैं?
बिहार राज्य के नालंदा ज़िला के नगरनौसा प्रखंड से शोभा ,मोबाइल वाणी के माध्यम से कहती है कि सरकार जो भूमि सर्वे चला रहे है ,जिसमे जिनके पास सही कागज़ात है ,उनका नाम नया अपडेट हो रहा है। जिसमे कार्यक्रम में बताया जा रहा है कि भाई का जितना जमीन में हक़ है उतना हक़ बहन को भी मिलेगा। लेकिन महिला अपने अधिकार के प्रति जागरूक नहीं है। ऐसा लगता है जैसे अगर महिला मायके से जमीन लेंगी तो उनका परिवार में रिश्ता ख़राब होगा। लेकिन ऐसा नहीं होगा ,सरकार का नियम अनुसार ही यह कार्य होगा। इसमें परिवार में मतभेद नहीं होगा। सरकार हक़ दिलाने का कार्य कर रहे है