बिहार राज्य के नालंदा ज़िला से मुस्कान कुमारी ,मोबाइल वाणी के माध्यम से बताती है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम बुनियादी कानून है जिसके आधार पर स्कूलों के बारे में कई नियम बनाए गए हैं।6 से 14 वर्ष के उम्र के बच्चों को किसी भी विद्यालय में प्रवेश देने से मना नहीं किया जा सकता है ।

दोस्तों, भारत के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट से यह पता चला कि वर्तमान में भारत के करीब 6.57 प्रतिशत गांवों में ही वरिष्ठ माध्यमिक कक्षा 11वीं और 12वीं यानी हायर एजुकेशन के लिए स्कूल हैं। देश के केवल 11 प्रतिशत गांवों में ही 9वीं और 10वीं की पढ़ाई के लिए हाई स्कूल हैं। यदि राज्यवार देखें तो आज भी देश के करीब 10 राज्य ऐसे हैं जहां 15 प्रतिशत से अधिक गांवों में कोई स्कूल नहीं है। शिक्षा में समानता का अधिकार बताने वाले देश के आंकड़े वास्तव में कुछ और ही बयान करते हैं और जहां एक तरफ शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति समाज की प्रगति का संकेत देती है, वहीं लड़कियों की लड़कों तुलना में कम संख्या हमारे समाज पर प्रश्न चिह्न भी लगाती है? वासतव में शायद आजाद देश की नारी शिक्षा के लिए अभी भी पूरी तरह से आजाद नहीं है। तब तक आप हमें बताइए कि * ------क्या सच में हमारे देश की लड़कियाँ पढ़ाई के मामले में आजाद है या अभी भी आजादी लेने लाइन में खड़ी है ? * ------आपके हिसाब से लड़कियाँ की शिक्षा क्यों नहीं ले पा रहीं है ? लड़कियों की शिक्षा क्यों ज़रूरी है ? * ------साथ ही लड़कियाँ की शिक्षा के मसले पर आपको किससे सवाल पूछने चाहिए ? और इसे कैसे बेहतर बनाया जा सकता है ?

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बिहार राज्य के नालंदा जिला के हिलसा प्रखंड से कुमारी आकांक्षा ने मोबाइल वाणी के माध्यम से सत्यम राज से साक्षात्कार लिया। सत्यम राज ने बताया कि ये स्कूल नहीं जाते थे। एक बार इन्होने मेरी आवाज मेरी पहचान मंच पर "राइट टू एजुकेशन" सम्बंधित वार्ता सुना। जिसमें बताया गया था कि सरकारी स्कूलों में बच्चों को मुफ्त खाना और किताब दिया जाता है। साथ ही विद्यार्थियों को आर्थिक सहायता भी मिलता है। कार्यक्रम सुनकर सत्यम की सोच में बदलाव आया एवं स्कूल जाने के लिए प्रेरित हुए। सत्यम अब नियमित रूप से स्कूल जाते हैं।

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