तमिलनाडु के वस्त्र-उद्योगों में बाल-श्रमिकों की संख्या में वृद्धि के चिन्ह/संकेत तमिलनाडु के एक कतायी कारख़ाने या स्पिनिंग मिल से 35 बच्चों को मुक्त कराए जाने के बाद से वस्त्र-कारख़ानों में बाल-श्रम की समस्या से निबटने के प्रयास बढ़ गए हैं। चाइल्डलाइन, जो बच्चों के लिए काम करने वाले एक आपातकालीन टोल फ़्री नम्बर है, की सूचना पर पिछले सप्ताह त्रिपुर में 32 लड़कियों और 3 लड़कों को बाल-श्रम से मुक्त कराया गया। ज़िले के बाल कल्याण समिति के अनुसार ये बच्चे बिना किसी साप्ताहिक छुट्टी के प्रतिदिन 14 घंटे काम करने को बाध्य किए जाते थे।तिरुपुर जिलाधीकारी के विजयकार्थिकेयन ने बताया कि इस घटना के बाद से स्थानीय प्रशासन ने प्रमुख वस्त्र उत्पादक क्षेत्रों में बालश्रमिकों की खोज करने के लिए अपने प्रयास बढ़ा दिए हैं, अब, जबकि कोविड-19 के फैलाव को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के बाद भारत धीरे-धीरे खुलने लगा है, बाल-श्रम उन्मूलन के क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ता इस बात से चिंतित हैं कि बालश्रमिक, जो अभी तक विद्यालयों में पढ़ने के लिए वापस नही जा सके हैं, उन कारख़ानों द्वारा भर्ती और शोषित किए जाएँगे जो प्रवासी श्रमिकों की कमी से उबरने के प्रयास करने में लगे हैं। आशा कार्यकर्त्री - भारत की कोविड-विरोधी अग्रिम पंक्ति इस सप्ताहांत शुक्रवार को केंद्रीय व्यापार संघों के आह्वान पर लगभग 6 लाख आशा कार्यकर्त्रियों द्वारा एक राष्ट्र-व्यापी हड़ताल करने की अपेक्षा थी। 10 केन्द्रीय व्यापार संघों द्वारा जारी एक वक्तव्य के अनुसार कार्यकर्त्रियाँ इस बात को ले कर विरोध प्रदर्शन कर रहीं हैं कि सरकार कोविड-19 के विरुद्ध लड़ायी में उनका पर्याप्त तथा अपेक्षित सहयोग नही कर रही है। इसमें सुरक्षा उपकरणों का अभाव, समय पर वेतन प्रदान नही करने तथा जोखिम भत्तों का भुगतान नही करने जैसे मुद्दे शामिल हैं। 2005 से सक्रिय आशायें देश के विशाल ग्रामीण एवं दूरस्थ क्षेत्रों तक मातृत्व-स्वास्थ्य-सुरक्षा तथा टीकाकरण जैसे स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रमुख कार्यक्रमों को पहुँचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाती रही हैं। कोविड-19 विश्वव्यापी महामारी की शुरुआत से ही आशा कार्यकर्तियाँ छिट-पुट विरोध प्रदर्शन और हड़ताल करती रही हैं। जुलाई माह में भी लगभग 40000 आशा कार्यकर्तरियों ने कर्नाटक में बेहतर सुरक्षा उपकरणों और 12000 रुपए प्रतिमाह के तय वेतन को बढ़ाने की माँगों को ले कर हड़ताल किया था। अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिकों के नही आने के कारण उद्योग जगत् श्रमिकों की कमी से झूझने को बाध्य। भारत में सख़्त लॉकडाउन के कारण घर लौट चुके प्रवासी श्रमिकों के कारण देश के कुछ प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों जैसे खनन, विनिर्माण और खुदरा क्षेत्रों में श्रमिकों की अत्यधिक कमी चिंताजनक परिस्थितियाँ निर्मित होने लगी हैं। इण्डिया रेटिंग़्स एंड रीसर्च के अनुसार यदि आगामी महीनों में कर्मचारी-श्रमिक काम पर वापस नही लौटते हैं तो विनिर्माण और उत्पादन क्षेत्र को श्रमिकों की कमी के कारण मज़दूरी-वेतन में बढ़ोतरी का सामना करना पड़ सकता है। इसका असर विशेषकर छोटी कम्पनियों की लाभोत्पादकता या लाभ पर भी पड़ेगा। इस सन्दर्भ में यह महत्वपूर्ण है कि लगभग 30 प्रतिशत खनन क्षेत्र और 13 प्रतिशत विनिर्माण क्षेत्र अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिकों के श्रम के सहारे संचालित होता रहा है।