संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के मुताबिक 2022 में करीब 4.33 करोड़ बच्चों को जबरन विस्थापित होने का दंश झेलना पड़ा था। विस्थापित बच्चों का यह आंकड़ा 2022 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। गौरतलब है कि अपने घरों को छोड़ जबरन विस्थापित हुए बच्चों की संख्या पिछले दशक में बढ़कर दोगुनी हो गई है।इनमें से 1.2 करोड़ बच्चे वो थे जिनकों बाढ़, सूखा, तूफान जैसी चरम मौसमी घटनाओं के चलते जबरन अपना घर-बार छोड़ना पड़ा था।विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।
Transcript Unavailable.
Transcript Unavailable.
Transcript Unavailable.
Transcript Unavailable.
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा की जा रही दूषित कफ सीरप की जांच में भारत और इंडोनेशिया की 20 विषाक्त दवाओं को चिह्नित किया गया है। डब्ल्यूएचओ के प्रवक्ता क्रिश्चियन लिंडमीयर ने कहा कि ये 20 उत्पाद दोनों देशों के ’15 अलग-अलग निर्माताओं’ द्वारा निर्मित थे और सभी दवाएं सीरप हैं, जिनमें खांसी की दवा, पैरासिटामोल या विटामिन शामिल हैं।ज़्यादा जानने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें।
स्कूली शिक्षा में सुधार की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे शिक्षा मंत्रालय की एक और बड़ी पहल रंग लाते दिख रही है। जिसमें छात्रों के बीच की असमानता की खाईं को पाटने और उन्हें किसी तरह की असुविधा से बचाने के लिए ज्यादातर राज्य अब एक जैसे पैटर्न पर बोर्ड परीक्षाएं कराने के लिए सहमत होते दिख रहे है।खबर को पूरा सुनने के लिए ऑडियो लिंक पर क्लिक करें
Transcript Unavailable.
उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार तक भीषण गर्मी के कारण लोगों की जिंदगी पर बन आई है, बची-खुची कसर दोनों राज्यों की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था ने कर दी। केवल उत्तर प्रदेश के बलिया में 57 लोगों की मौत हो चुकी है, और ये आंकड़े चौंकाने वाले इसलिए हैं, क्योंकि ये मौतें महज़ पिछले तीन दिनों में हुई है। वहीं अस्पताल प्रबंधक ये मानने को तैयार नहीं है, कि ये मौतें हीट वेव के कारण हो रही हैं, जबकि इन मौतों का कारण कभी कॉलरा बताया जा रहा है, तो कभी डायरिया, या ये कहकर जस्टिफाई किया जा रहा है कि ये मौतें दूषित पानी पीने के कारण हो रही है।विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।
भारत की एक बड़ी आबादी को इलाज पर होने वाला खर्च गरीब बना रहा है, खासकर अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति में ग्रामीण और शहरी परिवार कर्जदार बन रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इलाज के लिए अस्पताल में होने वाली करीब 14 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में साढ़े आठ प्रतिशत भर्तियों के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है।ज़्यादा जानने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें।