दिल्ली से संवाददाता रफ़ी की बातचीत साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से आईएमटी मानेसर निवासी दीपक से हुई। दीपक बताते है कि वो बिहार के सीतामढ़ी ज़िला के निवासी है और लगभग आठ वर्षो से मानेसर में रह रहे है। उनके साथ कंपनी में दुर्घटना हो गई थी जिसमें 50 प्रतिशत उनके शरीर को नुक्सान पहुँचा था। उस दौरान वो असहाय हो गए थे। उन्होंने कंपनी के एच आर व अन्य अधिकारियों से विनती की कि उन्हें जीविका के लिए कोई भी काम दे दिया जाए परन्तु कंपनी ने उनकी कोई सहायता नहीं की। उन्होंने कई बार कंपनी के चक्कर भी काटे पर कोई सहायता नहीं मिली। थक हार कर उन्होंने कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, उन्होंने 2016 में न्यायालय में केस दर्ज़ किया था।वकील के माध्यम से राय ली और पिछले छह सालों से मुक़दमा चल रहा है जिसका अब तक उन्हें न्याय नहीं मिला है। कोर्ट में तारीख़ के सिवा कुछ नहीं मिलता है। वक़ील के माध्यम से ही न्यायालय में केस दर्ज़ होता है। अपनी समस्या बताने पर वक़ील अपने तरह से लिखित रूप में फाइल जमा करते है। पिछले एक वर्षो से न्यायालय के कार्यो से उनका अनुभव अच्छा नहीं रहा है। केवल कोर्ट के चक्कर काटते हुए ही उनकी तारीख़े बीती है। कभी कंपनी के ठेकेदार व वकील की अनुपस्थिति के कारण मामला लंबित होता चला जाता है।न्यायालय के अंदर मज़दूरों से उनके पक्ष की समस्या नहीं पूछी जाती है केवल दोनों पक्षों से कागज़ी कार्यवाही चलती रहती है जिसकी कोई जानकारी नहीं हो पाती है। कुछ ऐसे लोग भी जो लंबित मामलों से हार मान कर केस बीच में ही छोड़ देते है। श्रमिक के साथ उनके कार्यस्थल में जो भी समस्याएँ आती है ,पहले वो चाहते है कि मामला कंपनी में ही सुलझ जाए परन्तु कंपनी से साथ नहीं मिलने पर उन्हें कोर्ट की तरफ अपना रुख मोड़ना पड़ता है। कोर्ट जाने के बाद उन्हें वकील के माध्यम से उनकी समस्या का निवारण हेतु आश्वासन मिलता है परन्तु इसके लिए बहुत लंबा वक़्त लग जाता है। अदालत की सारी भाषा अंग्रेजी में होती है जिसको वकील थोड़ा बहुत समझाते है। अदालत में अंग्रेजी में ही लिख कर समस्या को पेश की जाती है। इसकी कॉपी भी दी जाती है पर ज़ज के पास मामला पहुँचने पर केस सम्बन्धी अपडेट नहीं मिल पाती है। अगर वकील नहीं होगा तो अदालत में ज़ज तक अपनी समस्या नहीं पहुँचाया जा सकते है। एक प्रवासी श्रमिक होने पर उन्हें ज़्यादा समस्या हुई। परिवार के साथ रहने में उनके ख़र्चे बहुत ज़्यादा है। कोर्ट सुबह नौ बजे पहुँचना ज़रूरी होता है ,समय की कोई सीमा नहीं होती है जिससे तारीख़ आगे बढ़ती है। आने जाने का किराया मिला कर पिछले छह वर्षो में उनका 50 हज़ार रूपए से ऊपर तक का ख़र्च हो चुका है। अगर ऑनलाइन व्यवस्था हो जाए जिसमें आदेश प्राप्त किया जा सके,सुनवाई की तारीख़ ले सके ,अदालती कार्यवाही को ऑनलाइन देखी या सुनी जा सके तो यह उन लोगों के लिए फायदेमंद है जो पढ़ने लिखने में असमर्थ है ।वैसे श्रमिक फ़ोन के माध्यम से सुन और समझ सकते है। अगर स्मार्ट फ़ोन का इस्तेमाल से घर बैठे ही अदालती कार्यवाही देखी जा सके तो इससे बहुत सहूलियत होगा। अगर आईवीआर द्वारा अदालती कार्यवाही को सुनने का विकल्प मिले तो इसे भी सुनना पसंद करेंगे। अगर अदालत द्वारा ऐसी सुविधा उपलब्ध हो जिसमे केस दाख़िल करने से जुड़े सारे खर्च और केस जीतने के अनुमान बता दें तो इससे श्रमिकों को बहुत फ़ायदा है वो अपने परिवार का सारा ख़र्च व्यवस्थित कर पाएँगे। अगर मुआवज़ा की भी बातें पहले से मालूम पड़ जाए तो परिवार के भविष्य के लिए विकल्प तैयार कर सकते है। गाँव में किसी दो पक्षों में विवाद होने पर लोग पहले थाने पर जाते है अगर वहाँ सुलह नहीं हो पता है तब कोर्ट जाया जाता है। इन मामलों पर सरपंच व विधायक का कोई सहयोग नहीं मिलता न ही उनके द्वारा सुलह करवाई जाती है । ग्रामीण कोर्ट की प्रक्रिया में नहीं फसने के कारण बिचौलियों द्वारा पैसों के माध्यम से मामले का निपटारा करवाते है। कंपनी वाले मज़दूरों के बीच एकता नहीं बनने देती है। उनके अधिकारों से जुड़े बाते भी नहीं करती है। सलाह देने के लिए कोई अधिकारी भी नहीं है। अदालत में फ़ोन कर अदालत की सूची से जुड़ी जानकारी लेने के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया तो यह लाभदायक होगा। श्रमिकों के बीच ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिनके माध्यम से उन्हें उनके केस सम्बन्धी जानकारी मिल सके। अगर ग्राम वाणी के तरफ से न्यायालय कार्यवाही सम्बन्धी फ़ोन एप्प लाया जाए तो उसमे किसी क़ानून से जुड़े व्यक्तियों की जानकारी मिलनी चाहिए जिसके द्वारा सही से उनका कार्य हो सके ,किन समस्याओं को लेकर अदालत में उपस्थित होने की जानकारी मिले ,अदालत की सटीक तारीखों की जानकारी ,इस तरह की सुविधा मिलनी चाहिए। अदालती कार्यवाही बहुत ख़र्च बैठता है ,श्रमिकों की मामलों में वक़ील प्रतिशत के हिसाब से केस लड़ते है जिसमे श्रमिक को मिलता है उसमे से वकील अपना मेहनताना निकाल ले लेते है।