रोज़ी रोटी  की तलाश में गाँव छूटा  और शहर आकर पेट की खातिर मज़दूर बन गए।और वही जब कोरोना महामारी ने हम मजदूरों को गाँव जाने के लिए मजबूर किया,तब हजारों मील पैदल चलने के बाद भी कोई क्वारंटीन हुआ तो उसने प्रधान पर शेल्टर होम में बन्द कराने का इल्जाम लगाया। तो किसी ने प्रधान पर राशन और रोजगार न दे पाने के आरोप जड़े।कहीं बच्चों थाली से मध्याह्न भोजन गायब मिले , तो कहीं मनरेगा में काम ना मिल पाने का दर्द। लेकिन अब हम प्रवासी मज़दूर अपने गाँव की किस्मत बदल सकते है। जानने के लिए सुने मेरा मुखिया कैसा हो