कोरोना संक्रमण के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान और फिर हुए अनलॉक के बाद भी विभिन्न फैक्ट्रियों, कम्पनियों में कार्यरत श्रमिकों को बाज़ार की मंदी का रोना रोते हुए उन्हें बिना कारण बताए काम से निकाल देना कोई नयी बात नहीं है। इन खबरों के माध्यम से हम आपको बस इतना बताना चाहते हैं कि विभिन्न फैक्ट्रियों, कम्पनियों में कार्यरत श्रमिकों को बिना कारण बताए काम से सिर्फ़ अभी ही नहीं निकाला जा रहा, बल्कि यह क्रम तो बहुत पहले से चला आ रहा है। हाँ, उसके पीछे के बहाने जरूर बदल जाते हैं, जैसे अभी कोरोना-संक्रमण के कारण छायी वैश्विक मंदी और माँग कम होने के कारण हो रहे घाटे का है। इसलिए इन बीत चुकी खबरों के माध्यम से हमें इतिहास में झांकते हुए उससे सबक़ सीखने और खुद को विपरीत परिस्थितियों के लिए तैयार रहने की सीख मिलती है।दिल्ली के ओखला फ़ेज़ 1 स्थित भगवती कंस्ट्रक्शन एंड इंजीनियर्स नामक फ़ैक्ट्री, जिसमें लोहे का काम होता था और रेलवे तथा जय भारत मारुति के लिए फ़ायर बॉक्स बनते थे, एक झटके में श्रमिकों को काम से निकालने के लिए उनसे कम्पनी में हड़ताल करवाना चाहती थी, पर श्रमिकों ने खुद को संगठित कर बिचौलियों की बजाय खुद बात करने पर ज़ोर दिया और हड़ताल नहीं होने दी। फिर भी कम्पनी ने धीरे-धीरे श्रमिकों को निकालते हुए उनकी संख्या घटाते हुए 150 से 60 कर दी। श्रम निरीक्षक आता था और पैसे लेकर चला जाता था। इसमें हेल्परों का वेतन 2200 रुपए और कारीगरों का 2700 से 4800 रुपए था। बाद में ईएसआई और पीएफ़ वाले सिर्फ़ नौ श्रमिक ही बचे थे। 50 श्रमिकों की कोई ईएसआई और पीएफ़ नहीं कटता था। एक शिफ़्ट थी सुबह नौ बजे से रात साढ़े नौ बजे की, लेकिन श्रमिकों को अगली रोज़ के सुबह नौ बजे तक रोक लेते थे। महीने में 150 से 250 घंटे ओवर टाइम का भुगतान सिंगल रेट से करते थे, चाय के लिए 4 रुपए देते थे और अगर रात साढ़े नौ बजे के बाद रोकते थे, तब खाने के लिए 30 रुपए देते थे। इसके अतिरिक्त आप कभी भी सुन सकते हैं अपने मोबाइल में नम्बर आठ तीन दबाकर फ़रीदाबाद मज़दूर समाचार की विभिन्न कड़ियों को।