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झारखण्ड राज्य के बोकारो जिला के नावाडीह प्रखंड से जे.एम रंगीला मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं कि देश के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू जी के द्वारा मिश्रित अर्थ व्यवस्था की शुरुआत की गई थी। जिसमें सार्वजनिक पक्षपानो तथा निजी औधोगिक ग्रामों का सम्मानरूप से विकास हुआ था।वहीं पी. वी. नरसिम्हा राव की सरकार ने निजीकरण एवं बाजारीकरण की नीति लाइ जो आज भी भारत में निजीकरण की नीति हावी है।इस निजीकरण के प्रभाव से भारतीय रेलवे भी अछूता नहीं रहा बावजूद इसके भारतीय रेलवे में हॉकर्स, वसूली संस्कृति में अपना जीवन यापन करने को विवश हैं। गौर करने वाली बात है कि पूर्व मध्य रेलवे के गोमो,बड़काकाना रेखखंड में चलने वाली सवारी गाड़ियों में पांच सौ से सात सौ हॉकर्स अपने समानो की बिक्री कर अपना तथा अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। जिसमें गोमो से चंद्रपुरा का किराया 80 रुपया और चंद्रपुरा से गोमिया 40 रुपया तथा गोमिया से बड़काकाना 80 रुपया हिसाब से आरपीआरफ एवं जीआरपीएफ द्वारा हॉकरों से वसूली की जाती है। इससे यह ज्ञात होता है कि औसतन 200 रूपए प्रति हॉकर्स प्रति दिन के दर से सलाना लाखों रूपए की वसूली की जाती है। जो रेलवे राजस्व को चूना लगाने जैसा काम है।तो ऐसी स्थिति में क्यों नहीं राशि निर्धारित कर हॉकर्स को लाइसेंस निर्गत किया जाए, ताकि हॉकर्स स्वच्छ वातावरण में अपना व्यवसाय कर सके और साथ ही रेलवे के राजस्व में भी इजाफा हो सके।
भारतीय रेलवे को निश्चित अवधि में रेल यात्री किराये की समीक्षा करनी चाहिए. तो श्रोताओं आप हमे बताये , जीआरपीएफ एवं आरपीएफ द्वारा अपनी मान मर्ज़ी चलाने से कई तरह की समस्याओं का सामना रेलवे विभाग को करना पड़ता है.. इस समस्या का समाधान निकालने क लिए रेलवे विभाग को कौन से ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है....? दोस्तों, कई बार रेलवे कर्मियों द्वारा अपने विभिन्न मांगों को लेकर हड़ताल किया जाता ऐसे में रेलवे कर्मियों के हड़ताल में चले जाने से रेलवे को कितना नुकसान उठना पड़ता है...? कई बार हमे सुनने ओर पढ़ने को मिलता है की जीआरपीएफ एवं आरपीएफ के वेतन से अधिक यात्रियों से वसूली की गई राशि होती है. तो क्या प्रसाशण को इस पर कोई कदम उठना चाहिए जिससे जनता के साथ- साथ रेलवे विभाग को भी राहत मिल सके...?आप हमे बातएं की रेलवे को राजस्व का नुकसान को कम करने में एक आम यात्री की क्या भूमिका होनी चाहिए..?आपके अनुसार किराये को व्यवहारिक बनाने और यात्री किराये से राजस्व को बढ़ाने के लिए रेलवे द्वारा क्या कदम उठाये जाने चाहिए..?
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झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद से राधू राइ जी मोबाइल वाणी के माध्यम से रेलवे के राजस्व हानि के कारण कविता के रूप में बता रहे है।
भारतीय रेलवे को निश्चित अवधि में रेल यात्री किराये की समीक्षा करनी चाहिए. तो श्रोताओं आप हमे बताये , जीआरपीएफ एवं आरपीएफ द्वारा अपनी मान मर्ज़ी चलाने से कई तरह की समस्याओं का सामना रेलवे विभाग को करना पड़ता है.. इस समस्या का समाधान निकालने क लिए रेलवे विभाग को कौन से ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है....? दोस्तों, कई बार रेलवे कर्मियों द्वारा अपने विभिन्न मांगों को लेकर हड़ताल किया जाता ऐसे में रेलवे कर्मियों के हड़ताल में चले जाने से रेलवे को कितना नुकसान उठना पड़ता है...? कई बार हमे सुनने ओर पढ़ने को मिलता है की जीआरपीएफ एवं आरपीएफ के वेतन से अधिक यात्रियों से वसूली की गई राशि होती है. तो क्या प्रसाशण को इस पर कोई कदम उठना चाहिए जिससे जनता के साथ- साथ रेलवे विभाग को भी राहत मिल सके...?दोस्तों आप हमे बातएं की रेलवे को राजस्व का नुकसान को कम करने में एक आम यात्री की क्या भूमिका होनी चाहिए..?आपके अनुसार किराये को व्यवहारिक बनाने और यात्री किराये से राजस्व को बढ़ाने के लिए रेलवे द्वारा क्या कदम उठाये जाने चाहिए..?