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जिला धनबाद के प्रखंड बाघमारा,महुदा से बीरबल महतो जी मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं कि हमारे देश में विभिन्न प्रकार के भेष-भूषा,रहन-सहन,भाषा एवं संस्कृति है। बावजूद इसके यहां विभिन्ता में एकता पाया जाता है। लेकिन गौर करने वाली बात हैं कि आज के युवा पीढ़ी पश्चिमी सभ्यता को अपना कर अपनी सभ्यता को भूलते जा रहे हैं।जिसके कारण आज दोहा गायन की परम्परा लुप्त होता जा रहा है।पहले लोग अपनी मन की भावनाओं को दो समूहों में बट कर प्रतियोगिता की भांति सामाजिक,धार्मिक तथा राजनितिक बातों को लोक गीत,दोहा गायन के माध्यम से बताया करते थे ,जिनसे बच्चों को शिक्षा मिलती थी।परन्तु आज के युवा पीढ़ी फिल्मो की अश्लील गीत गाते हैं, जो भारतीय सभ्यता के विरुद्ध है। इसका मुख्य कारण माता-पिता एवं घर के बड़े बुजुर्ग हैं, जो बच्चो को सही शिक्षा एवं संस्कार नहीं देते हैं। माता-पिता बच्चो को स्कूल भेज कर समझते है कि वे अपने कर्तव्य का पालन कर रहे है।उन्होंने यह बताया कि पूर्व में लोग दोहा गायन धान की रोपाई के समय तथा पर्व त्यौहारों में दो समूह में बांट कर गाए जाने वाला मधुर संगीत है जिससे स्थानीय क्षेत्र का पहचान हुआ करता था।अतः वे कहते हैं कि आज विलुप्त होती दोहा गायन की परम्परा को उजागर करने की जरूरत है।

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जिला बोकारो पेटरवार से सुषमा कुमारी मोबाइल वाणी के माध्यम से बताती हैं कि लोक गीत,दोहा गायन या किसी प्राकृतिक से जुड़ी गीत आज के युवाओं को नहीं भाता है। जिस कारण लोग पुरानी परम्पराओं को भूलते जा रहे हैं।जैसे-जैसे समय बदलता जा रहा है वैसे-वैसे लोगों में रहन-सहन,गीत-गायन,कवि-कविताएँ आदि चीजे भी बदलती जा रही है।अगर लोग चांहे तो पुरानी लोक गीत,दोहा गायन,शादी की पुरानी गीत या प्राकृतिक से जुड़ी गीतों को दुबारा ला सकते हैं।पर इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में लोग व्यस्त हो गए हैं।जिस कारण लोग पुराने गीतों एवं दोहा गायन पर विशेष ध्यान नहीं दे पाते हैं।कई क्षेत्रों में यह भी देखा जाता है कि आज के युवा-युवतियां पुराने परम्पराओं में रूचि नहीं रखते है।