हरियाणा राज्य के झज्जर ज़िला के बहादुरगढ़ से सतरोहन लाल कश्यप ,साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते है कि कंपनियों में काम नहीं होने के कारण श्रमिक बेरोज़गार होते जा रहे है। कम्पनियाँ कहती है कि कच्चा माल नहीं आ रहा जिस कारण श्रमिकों को एक दो दिन काम करवा कर छुट्टी दे दी जाती है। कंपनी की स्थितियाँ बेहद ख़राब है। छोटी कम्पनियाँ तो पूरी तरह से बंद हो चुकी है।
हरियाणा राज्य के झज्जर ज़िला के बहादुरगढ़ से मनोहर लाल कश्यप ने साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि लॉक डाउन के डर से वापस प्रवासी श्रमिक अपने गाँव की ओर पलायन कर रहे है। कंपनी वालों ने भी काम न होने का बहाना बता कर काम से निकाल रहे है। श्रमिकों को पिछले लॉक डाउन की परेशानियाँ भी याद आ रही है। अब लोग सरकार व मीडिया पर कोरोना को लेकर संदेह कर रहे है। कई जगह कर्फ्यू का विरोध भी किया जा रहा है। ऑडियो पर क्लिक कर सुनें पूरी ख़बर...
दिल्ली मानेसर से दीपक साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि आईएमटी मानेसर के ऑटोलाइनर्स और स्पोर्ट्सलाइन की कंपनियों में होली का त्यौहार आने पर कंपनियों में मजदूरों छटनी शुरू कर दी गयी है
दिल्ली बहादुरगढ़ हरियाणा से शत्रोहन लाल कश्यप साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि देश के दो प्रमुख स्तम्भ किसान और मजदुर की हालात बहुत ही खराब है लेकिन सरकार इस पर कोई कार्य नहीं कर रही है
जहाँ एक तरफ़ लॉकडाउन के बाद कम्पनियाँ लगातार श्रमिकों की छँटनी की प्रक्रिया जारी रखे हुए हैं, वहीं दूसरी तरफ़ बेरोज़गारी की मार झेल रहे श्रमिकों का कहना है कि "शहर में काम की अत्यधिक कमी होने के कारण घर वापस लौट जाना उनकी मजबूरी बन गयी है। यह हम श्रमिकों के लिए आम समस्या है। सरकार इसके लिए न पहले ज़िम्मेदार थी, न अब है।" आइए, सुनते हैं पूरी बात- जैसा कि आपको पता है कि कम्पनी की सरकार और सरकार की कम्पनी दोनों ही हमारे श्रमिक साथियों के श्रम से बनी हैं और सिर्फ़ अपनी पूँजी को बढ़ाने के लिए हर बार उनके श्रम का इस्तेमाल करती आयी हैं। लेकिन कोरोना-संक्रमण के बाद की बदली हुई परिस्थितियों में हम आपसे जानना चाहते हैं कि आपको क्या लगता है कि रोज़गार की व्यवस्था करने की ज़िम्मेदारी किसकी है? क्या आप भी बेरोज़गारी की मार झेल रहे हैं? अगर हाँ, तो इसके लिए आपने अभी तक क्या किया है?
जहाँ एक तरफ़ लॉकडाउन के बाद कम्पनियाँ लगातार श्रमिकों की छँटनी की प्रक्रिया जारी रखे हुए हैं, वहीं दूसरी तरफ़ बेरोज़गारी की मार झेल रहे श्रमिकों का कहना है कि "शहर में काम की अत्यधिक कमी होने के कारण घर वापस लौट जाना उनकी मजबूरी बन गयी है। यह हम श्रमिकों के लिए आम समस्या है। सरकार इसके लिए न पहले ज़िम्मेदार थी, न अब है।" आइए, सुनते हैं पूरी बात- जैसा कि आपको पता है कि कम्पनी की सरकार और सरकार की कम्पनी दोनों ही हमारे श्रमिक साथियों के श्रम से बनी हैं और सिर्फ़ अपनी पूँजी को बढ़ाने के लिए हर बार उनके श्रम का इस्तेमाल करती आयी हैं। लेकिन कोरोना-संक्रमण के बाद की बदली हुई परिस्थितियों में हम आपसे जानना चाहते हैं कि आपको क्या लगता है कि रोज़गार की व्यवस्था करने की ज़िम्मेदारी किसकी है? क्या आप भी बेरोज़गारी की मार झेल रहे हैं? अगर हाँ, तो इसके लिए आपने अभी तक क्या किया है?
कोरोना संक्रमण के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान और फिर हुए अनलॉक के बाद भी विभिन्न फैक्ट्रियों, कम्पनियों में कार्यरत श्रमिकों को बाज़ार की मंदी का रोना रोते हुए उन्हें बिना कारण बताए काम से निकाल देना कोई नयी बात नहीं है। इन खबरों के माध्यम से हम आपको बस इतना बताना चाहते हैं कि विभिन्न फैक्ट्रियों, कम्पनियों में कार्यरत श्रमिकों को बिना कारण बताए काम से सिर्फ़ अभी ही नहीं निकाला जा रहा, बल्कि यह क्रम तो बहुत पहले से चला आ रहा है। हाँ, उसके पीछे के बहाने जरूर बदल जाते हैं, जैसे अभी कोरोना-संक्रमण के कारण छायी वैश्विक मंदी और माँग कम होने के कारण हो रहे घाटे का है। इसलिए इन बीत चुकी खबरों के माध्यम से हमें इतिहास में झांकते हुए उससे सबक़ सीखने और खुद को विपरीत परिस्थितियों के लिए तैयार रहने की सीख मिलती है।दिल्ली के ओखला फ़ेज़ 1 स्थित भगवती कंस्ट्रक्शन एंड इंजीनियर्स नामक फ़ैक्ट्री, जिसमें लोहे का काम होता था और रेलवे तथा जय भारत मारुति के लिए फ़ायर बॉक्स बनते थे, एक झटके में श्रमिकों को काम से निकालने के लिए उनसे कम्पनी में हड़ताल करवाना चाहती थी, पर श्रमिकों ने खुद को संगठित कर बिचौलियों की बजाय खुद बात करने पर ज़ोर दिया और हड़ताल नहीं होने दी। फिर भी कम्पनी ने धीरे-धीरे श्रमिकों को निकालते हुए उनकी संख्या घटाते हुए 150 से 60 कर दी। श्रम निरीक्षक आता था और पैसे लेकर चला जाता था। इसमें हेल्परों का वेतन 2200 रुपए और कारीगरों का 2700 से 4800 रुपए था। बाद में ईएसआई और पीएफ़ वाले सिर्फ़ नौ श्रमिक ही बचे थे। 50 श्रमिकों की कोई ईएसआई और पीएफ़ नहीं कटता था। एक शिफ़्ट थी सुबह नौ बजे से रात साढ़े नौ बजे की, लेकिन श्रमिकों को अगली रोज़ के सुबह नौ बजे तक रोक लेते थे। महीने में 150 से 250 घंटे ओवर टाइम का भुगतान सिंगल रेट से करते थे, चाय के लिए 4 रुपए देते थे और अगर रात साढ़े नौ बजे के बाद रोकते थे, तब खाने के लिए 30 रुपए देते थे। इसके अतिरिक्त आप कभी भी सुन सकते हैं अपने मोबाइल में नम्बर आठ तीन दबाकर फ़रीदाबाद मज़दूर समाचार की विभिन्न कड़ियों को।
दिल्ली एनसीआर के मानेसर से दीपक ,साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते है कि अभी की स्थिति बेहद ख़राब चल रही है। कोई भी कंपनी में श्रमिकों का भर्ती नहीं लिया जा रहा है और लगातार श्रमिकों की छटनी ज़ारी है
दिल्ली एनसीआर के मानेसर के सेक्टर 3 से दीपक ने साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि सत्यम ऑटो कंपनी में लगातार मज़दूरों की छटनी ज़ारी हैं। कंपनी में काम नहीं होने की बात कह कर व मैनेजमेंट द्वारा कई बहाने बना कर ,श्रमिकों की गलतियाँ निकाल कर उन्हें कंपनी से हटा दे रही है। परमानेंट व दिहाड़ी पर काम करने वाले श्रमिकों को कंपनी से बाहर निकाला गया जिस कारण सभी मज़दूर साथी अपनी माँगों के साथ कंपनी में हड़ताल पर बैठे है
दिल्ली से मनोहर लाल कश्यप साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से एएलसी के ऑडिटर सुमेर सिंह से वार्ता कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कंपनी से तीन -चार दिन में ही श्रमिकों को निकाल दिया जाता है जो क़ानूनी तौर पर गलत है